Soniya bhatt

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नन्द उत्सव



कृष्ण जन्माष्ट्मी और नन्द उत्सव

शुकदेव  जी महाराज कहते है परीक्षित भगवान नन्द बाबा के घर  श्री कृष्ण जी प्रकट  हुए है और नन्दोत्सव  मनाया गया है । सभी नन्द उत्सव मना रहे है। उत्सव का अर्थ होता है उत्साह। ख़ुशी। सारे गोकुल में ही नहीं सारे ब्रज में उत्सव मनाया जा रहा है। सभी को लग रहा है की हमारे ही घर कृष्ण ने जन्म लिया है।

        क्योंकि जब तब परमात्मा को अपना नहीं मानोगे आपको आनंद नही आएगा। वो आनंद ही कृष्ण है। तभी तो नन्दोत्सव कहा गया है। नन्द बाबा ने उन्ही ब्राह्मणों को बुलवाया जिनकी कृपा से ये दिन देखने को मिला। जात कर्म करवाये गए। सात तिल के पर्वतो का दान किया और 2 लाख गउओं का भी दान किया। नन्द बाबा ने सभी को दान दिया है। और खूब लुटाया है। ऐसा लग रहा है जैसे लक्ष्मी ब्रज में लोट लगा रही है। नन्द बाबा ने जिसने जिस वस्तु की कामना की है उसी के अनुसार लुटाया है। किसी ने हाथी की सवारी मांगी है। किसी ने गइया मांगी है।

         (कथा): यह कथा मैंने गुरुदेव के मुख से सुनी है आनद लीजिये बस

        एक ब्राह्मण नन्द बाबा के पास आये और उस बाबा को बधाई दी है। ब्रजराज बधाई हो! बधाई हो!
        नन्द बाबा ने ब्राह्मण को प्रणाम किया है और कहा-क्या चाहिए ब्राह्मण देव?

        उसने गऊ की याचना की है। नन्द बाबा ने उसी गऊ प्रदान की है। ब्राह्मण गऊ लेकर अपने घर आ गया। घर के आँगन में गऊ बाँधी।

        ब्राह्मण ने सोचा आज तो नन्द बाबा हो होश नही है की कौन कितनी बार दान लेकर जा रहा है। वो तो लुटाए जा रहे है बस। क्यों ना एक गऊ और ले आऊं। दोबारा पहुंच गए नन्द बाबा के घर और कहा ब्रजराज बधाई हो।

        बाबा बोले क्या चाहिए महाराज ?
        बोले की एक गऊ दे दो। हाँ हाँ क्यों नही ले जाओ। एक गऊ और दान दे दी। उन्हें याद नही है कौन कितनी बार क्या लेके जा रहा है।

        भैया जिसको बांके बिहारी मिल गए उसे दुनिया की कोई बात याद ही नही रहती है।

        ब्राह्मण गऊ लेकर घर गए और वो भी बाँध दी। फिर पहुंच गए नन्द बाबा के घर। बस लाये जा रहे है। और नन्द बाबा भी दिए जा रहे है। ब्राह्मण का पूरा आँगन गायों से भर गया।

        अब भी नही रुके और गऊ लेकर आ गए। ब्राह्मणी बोली अब यहाँ कहाँ बंधोंगे? ब्राह्मण ने एक खूंटा लिया और कमरे में गाड़ दिया और वहां गऊ बाँध दी। देखते ही देखते ब्राह्मण के सारे कमरे भी गऊ से भर गए।

        
(कृष्ण जन्म कथा )


        लेकिन कमाल है फिर एक गऊ ले आये। ब्राह्मणी बोली की अब तो घर में बाँधने की जगह भी नहीं है कहाँ बांधोगे?

        ब्राह्मण बोला की अभी भी जगह बची है तू बस देखती जा। जैसे तैसे रस्सी खिंच कर गऊ को लेकर गए और घर की छत पर बाँध दी। और लाये जा रहे है। सारी छत भी गायों से भर गई है।

        आँगन में गाय, कमरों में गाय और छत पर गाय।

        पर कमाल हो गया फिर एक गऊ ले आये। ब्राह्मणी बोली की महाराज हद पार कर दी आपने। अब तो कहीं भी जगह नही है।

        ब्राह्मण बोली की अभी भी जगह बची है। जैसे तैसे रस्सी पकड़ कर गऊ को अंदर लेकर गए और चूल्हा ही तोड़ दिया। चूल्हे में ही खूंटा गाड़ दिया। ब्राह्मणी ने सर पीटा और बोली की महाराज ये क्या कर दियो? चूल्हा ही तोड़ दिया। अब रोटी कहाँ बनाउंगी?

        ब्राह्मण बोले की अरी बावरी रोटी खायेगा कौन? अब तो नन्द के घर लाला हुए है। दूध दही और माखन ही खाएंगे बस।
        बोलिए बालकृष्ण लाल की जय!!

        इस प्रकार सबने बहुत आनंद से इस उत्सव को मनाया है।

        नन्द बाबा उस उत्सव को मनाकर मथुरा गए है। क्योंकि नन्द बाबा प्रतिवर्ष वार्षिक कर प्रदान करने के लिए मथुरा जाया करते थे।
        कंस को कर प्रदान कर जब लौटने लगे तो याद आया अपने मित्र वसुदेव से भी मिलता चलूँ। जब दूर से नन्द बाबा को आते देखा तो देख कर गदगद हो गए।

        आओ नन्द जी आओ। आपसे मिलकर ऐसे लगता है जैसे निष्प्राण देह में प्राण आ गए हो। गोकुल में सब प्रकार से आनद है ? आपके यहाँ बेटा हुआ है। और गोकुल में सब ठीक है ना? देखिये इस बात को वसुदेव छिपा रहे है की खुद ही लाला को गोकुल छोड़कर आये है। नन्द बाबा को भी ये बात मालूम नहीं है। नन्द बाबा कहते है की लाला एकदम ठीक है।

        वसुदेव कहते है की हमारे ऊपर तो प्रभु की किरपा खूब बरस रही है पर आपके साथ विधाता ने ठीक नहीं किया।
        वसुदेव जी एकदम चौंक गए और बोले की ब्रजराज आप क्या कहना चाहते है।

        नन्द बाबा कहते है की मैं कहना चाहता हूँ की उस दुष्ट कंस ने देवकी के 6 पुत्र मार दिए। सातवां देवकी का गर्भ नष्ट हो गया और आठवीं कन्या हुई और वो भी स्वर्ग सिधार गई।

        वसुदेव ने कहा देखा नन्द आज हमारे जीवन में दुःख है तो कल सुख भी आएगा। पर आपसे एक बात कहूँ की मेरे मन में शंका हो रही है। आप शीघ्र ही गोकुल पधारिये।

        नन्द बाबा ने एक क्षण का भी विलम्ब नही किया और वसुदेव से आज्ञा लेकर गोकुल पधारे है। वहां पूतना आई हुई थी।

        नन्द के लाला की जय !!




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